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वो पनघट पे जमघट‚ वो सखियों की बातें
वो सोने के दिन और चाँदी–सी रातें
वो सावन की रिमझिम‚ वो बाग़ों के झूले
वो गरमी का मौसम‚ हवा के बगूले
वो गुड़िया के मेले‚ हज़ारों झमेले
कभी हैं अकेले‚ कभी हैं दुकेले

मुझे गाँव अपना बहुत याद आता।
वो ढोलक की थापें‚ वो विरह वो कजरी
वो बंसी की तानें‚ कड़क बोल खंजड़ी
वो पायल की छम–छम‚ वो घुँघरूकी रुनझुन
वो चरख़ेकी चरमर‚ वो चक्की की घुनघुन

मुझे गाँव अपना बहुत याद आता।
वो पीपल की छैयाँ‚ नदी की तलैयाँ
वो चम्पे के झुरमुट‚ की सौ–सौ बलैयाँ
वो छप्पर से उठना‚ सुबह के धुएँ का
वो अमृत सा पानी‚ बुआ के कुएँ का

मुझे गाँव अपना बहुत याद आता।
वो धन्नो की नानी‚ सुनाती कहानी
वो था एक राजा‚ वो थी एक रानी
वो तीजों के त्यौहार‚ शादी–बरातें
मोहब्बत के रिश्ते– मोहब्बत की बातें

मुझे गाँव अपना बहुत याद आता।
है लगता कि जैसे वो था एक सपना
न मैं गाँव का था‚ न था गाँव अपना
शहर की नहीं ज़िंदगी मुझको भाती
मुझे गाँव की याद बेहद सताती

मुझे गाँव अपना बहुत याद आता।

~ किशोरी रमण टंडन