शहर की रौंदती सडकों से
मेरे गांव की पगडंडियां अच्छी
शहर की तिकडमी बोलियों से
गांव की बोलियां सच्ची
नग्नता को दिखाती
चमकते शहर की चमकती लड़कियों से
मेरे गांव की छोरियां अच्छी ।
दमघोंटू शहर की
बिषैली आबोहवा से
ऐसे धुंए व जहर से ठीक
मेरे गांव के जंगलों की हवा अच्छी ।
शहर के बड़े शीश महलों से
पापों से भरी कोठियों से ठीक
बेहतर है मेरे गांव की
माटी की झोपड़ियां अच्छी ।
इंसान को इंसान न समझने वाले
किसी को प्रीत न करने वाले
मतलब से सम्बन्ध रखने वाले
झूठे बनावटी शहरों की जिन्दगी से
गांव की सीधी साधी जिन्दगी सच्ची ।

-  धर्मवीर वर्मा